Mutual Divorce Process in India: चरण-दर-चरण मार्गदर्शिका

Mutual Divorce Process in India: चरण-दर-चरण मार्गदर्शिका

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Written by Admin

May 30, 2025

अगर आप बिना लड़ाई-झगड़े के शादी खत्म करना चाहते हैं, तो Mutual Divorce Process आपके लिए सही रास्ता है। इसमें पति-पत्नी दोनों सहमति से तलाक लेते हैं। यह प्रक्रिया सीधी, शांत और कानूनी होती है। भारत में यह प्रक्रिया Hindu Marriage Act 1955, Muslim Personal Law, Christian Marriage Act और Parsi Marriage and Divorce Act के तहत होती है। Mutual Divorce Process की शुरुआत एक joint petition for divorce से होती है।

इसके बाद कोर्ट की first hearing, फिर cooling-off period आता है। तलाक के लिए marriage certificate, proof of separation और mutual consent agreement जैसे जरूरी दस्तावेज चाहिए होते हैं। आपको child custody, alimony, और property division पर सहमति बनानी होती है। अगर दोनों पार्टनर तैयार हों, तो Mutual Divorce Process करीब 6 महीने में पूरी हो सकती है। एक अनुभवी divorce lawyer in Noida या आपके शहर में मदद कर सकता है। Mutual Divorce Process आसान और शांतिपूर्ण हो सकती है।

Table of Contents

परस्पर तलाक प्रक्रिया का परिचय

Mutual Divorce Process एक ऐसा कानूनी तरीका है जिसमें पति और पत्नी आपसी समझौते से शादी खत्म करने का निर्णय लेते हैं। यह प्रक्रिया बिना लंबी कानूनी लड़ाई के शांति से पूरी हो सकती है। इसमें दोनों पक्ष अलिमनी, संतान की कस्टडी, और संपत्ति के बंटवारे जैसे मुद्दों पर सहमति जताते हैं। Mutual Divorce Process भारतीय कानून जैसे Hindu Marriage Act 1955, Muslim Personal Law, और Christian Marriage Act के तहत मान्य है। यह प्रक्रिया तेज, सरल और कम तनावपूर्ण होती है।

परस्पर तलाक की प्रमुख शर्तें (Key Conditions for Mutual Divorce)

  1. पति और पत्नी को कम से कम एक वर्ष से अलग रहना चाहिए।
  2. दोनों पक्ष तलाक लेने पर सहमत होने चाहिए और कोई दबाव नहीं होना चाहिए।
  3. दोनों को संतान की कस्टडी, संपत्ति का वितरण, और आर्थिक समर्थन के मुद्दों पर सहमति देनी होती है।
  4. दोनों के पास शादी के दस्तावेज़, जैसे विवाह प्रमाणपत्र और विभाजन का प्रमाण होना चाहिए।
  5. दोनों पक्षों को तलाक के लिए म्यूचुअल कंसेंट एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करना होता है।

अन्य धर्मों के कानून (Laws for Other Religions)

  1. हिंदू विवाह अधिनियम 1955 – हिंदू धर्म के अनुयायी परस्पर सहमति से तलाक ले सकते हैं।
  2. मुस्लिम पर्सनल लॉ – मुसलमानों के लिए तलाक के विभिन्न रूप, जैसे तलाक-ए-मुफ़रत और तलाक-ए-तलीक होते हैं।
  3. ईसाई विवाह अधिनियम – ईसाई धर्म के अनुयायी परस्पर सहमति से तलाक ले सकते हैं, लेकिन अदालत में इसे प्रमाणित करना आवश्यक है।
  4. पारसी विवाह और तलाक अधिनियम – पारसी समुदाय के लोग तलाक के लिए अदालत में आवेदन कर सकते हैं।
  5. इन सभी धर्मों के कानूनों में बच्चों की कस्टडी और संपत्ति के बंटवारे के नियम समान होते हैं, लेकिन प्रक्रिया अलग-अलग होती है।

तलाक की प्रक्रिया (Divorce Process in India)

भारत में तलाक की प्रक्रिया कानूनी रूप से निर्धारित है, जो संबंधित धर्म और कानून के आधार पर होती है। परस्पर तलाक के लिए दोनों पक्षों को सहमति जतानी होती है, जबकि विवाह भंग के अन्य मामलों में एक पक्ष अदालत में आवेदन करता है। तलाक के दौरान, बच्चों की कस्टडी, संपत्ति का बंटवारा और भरण-पोषण जैसे मुद्दों पर सहमति बनानी होती है।

1. अर्जी दाखिल करना (How to Apply for Divorce in India)

भारत में तलाक के लिए सबसे पहला कदम अर्जी दाखिल करना होता है। इसे परिवार न्यायालय में दायर किया जाता है, जहां पति-पत्नी को तलाक की वजह और अन्य आवश्यक दस्तावेज़ों के साथ आवेदन करना होता है। यदि दोनों पक्षों के बीच सहमति हो, तो परस्पर तलाक के लिए म्यूचुअल कंसेंट पिटीशन दाखिल की जाती है, जबकि यदि एक पक्ष तलाक चाहता है, तो तलाक याचिका दायर की जाती है। अदालत द्वारा आवेदन का मूल्यांकन करने के बाद, सुनवाई की प्रक्रिया शुरू होती है।

2.पहली सुनवाई

तलाक की पहली सुनवाई में कोर्ट दोनों पक्षों को आमंत्रित करता है। इसमें अदालत तलाक की याचिका पर प्रारंभिक विचार करती है और यदि यह परस्पर तलाक है, तो दोनों पक्षों की सहमति की पुष्टि की जाती है। अदालत जरूरी दस्तावेजों की जाँच करती है, जैसे विवाह प्रमाणपत्र और अलगाव का प्रमाण। यदि कोई पक्ष बच्चों की कस्टडी या भरण-पोषण पर विवाद करता है, तो इस पर भी चर्चा होती है। पहली सुनवाई के बाद, यदि सभी शर्तें पूरी होती हैं, तो अगले चरण की प्रक्रिया शुरू होती है।

3.समयावधि (Cooling-Off Period)

समयावधि या cooling-off period वह समय होता है जो तलाक की याचिका दाखिल करने के बाद पति-पत्नी को अदालत द्वारा दिया जाता है। यह अवधि आमतौर पर 6 महीने होती है, ताकि दोनों पक्षों को अपनी निर्णय पर पुनर्विचार करने का समय मिल सके। इस समय के दौरान, अगर दोनों पक्षों की सहमति बनी रहती है, तो तलाक की प्रक्रिया आगे बढ़ती है। यह समयावधि तलाक के मामलों में शांतिपूर्ण समाधान की संभावना को बढ़ाती है और भावनात्मक दृष्टिकोण से भी निर्णय को स्थिर करती है।

4.दूसरी सुनवाई (Mutual Divorce Petition)

दूसरी सुनवाई के दौरान, अदालत यह सुनिश्चित करती है कि दोनों पक्षों ने Mutual Divorce Process के तहत Mutual Divorce Petition पर पूरी तरह से सहमति व्यक्त की है और सभी आवश्यक दस्तावेज़ जैसे संतान की कस्टडी और आलिमनी पर समझौता कर लिया है। यदि दोनों पक्षों की सहमति बनी रहती है और कोई विवाद नहीं होता, तो अदालत Mutual Divorce Process के अनुसार तलाक को मंजूरी देती है। इस सुनवाई में अदालत दोनों पक्षों से अंतिम निर्णय की पुष्टि करती है और तलाक के आदेश जारी करती है।

तलाक प्रक्रिया के महत्वपूर्ण बिंदु

  1. अर्जी दाखिल करना: तलाक के लिए परिवार न्यायालय में याचिका दायर करनी होती है। यह परस्पर तलाक या एकतरफा तलाक हो सकता है।
  2. पहली सुनवाई: अदालत तलाक की याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई करती है और दोनों पक्षों की सहमति की पुष्टि करती है।
  3. समयावधि (Cooling-Off Period): तलाक की याचिका दाखिल करने के बाद, पति-पत्नी को आमतौर पर 6 महीने का समय दिया जाता है, ताकि वे पुनर्विचार कर सकें।
  4. दूसरी सुनवाई: इस सुनवाई में अदालत दोनों पक्षों की सहमति की पुष्टि करती है और तलाक के आदेश जारी करती है।
  5. कस्टडी और संपत्ति का बंटवारा: तलाक के दौरान बच्चों की कस्टडी, संपत्ति का बंटवारा और आलिमनी जैसे मुद्दों पर सहमति बनानी होती है।
  6. अदालत का आदेश: सभी शर्तों के पालन के बाद, अदालत तलाक का अंतिम आदेश जारी करती है।

परस्पर सहमति से तलाक की मुख्य शर्तें (Mutual Divorce Process in India)

परस्पर सहमति से तलाक की मुख्य शर्तें में दोनों पति-पत्नी का तलाक के लिए सहमति होना आवश्यक है। इसके अलावा, बच्चों की कस्टडी, संपत्ति का बंटवारा और भरण-पोषण पर भी समझौता करना होता है।

अलगाव की अवधि (Separation Period)

अलगाव की अवधि वह समय होता है जब पति-पत्नी एक-दूसरे से अलग रहते हैं, और तलाक की प्रक्रिया शुरू करने से पहले यह अवधि जरूरी होती है। भारत में, तलाक के लिए सामान्यत: एक साल का अलगाव अनिवार्य होता है, खासकर यदि यह एकतरफा तलाक है। Mutual Divorce Process के मामले में, हालांकि, दोनों पक्षों को कम से कम एक साल अलग रहना चाहिए और फिर वे तलाक की याचिका दाखिल कर सकते हैं। यह अवधि पति-पत्नी को अपने रिश्ते पर विचार करने और अंतिम निर्णय लेने का समय देती है। Mutual Divorce Process के तहत यह अवधि दोनों पक्षों के लिए महत्वपूर्ण होती है ताकि वे तलाक से पहले अपने फैसले पर पुनः विचार कर सकें।

तलाक के लिए आपसी सहमति (Mutual Consent for Divorce)

Mutual Divorce Process तब होती है जब पति और पत्नी दोनों मिलकर शादी को समाप्त करने का निर्णय लेते हैं। इसमें दोनों पक्षों की सहमति जरूरी होती है, और वे तलाक की शर्तों पर समझौता करते हैं, जैसे संतान की कस्टडी, आलिमनी, और संपत्ति का बंटवारा। यह प्रक्रिया कम समय में पूरी हो सकती है, क्योंकि इसमें किसी भी पक्ष द्वारा विरोध नहीं होता। Mutual Divorce Process के लिए, दोनों को अदालत में एक म्यूचुअल कंसेंट पिटीशन दाखिल करनी होती है और फिर अदालत की सुनवाई के बाद तलाक का आदेश जारी होता है।

बच्चों की कस्टडी पर सहमति (Agreement on Child Custody)

बच्चों की कस्टडी पर सहमति एक महत्वपूर्ण बिंदु है जब पति-पत्नी Mutual Divorce Process के तहत आपसी सहमति से तलाक लेते हैं। दोनों पक्षों को यह तय करना होता है कि बच्चों को कौन संभालेगा और उनके भरण-पोषण के लिए कौन जिम्मेदार होगा। यदि दोनों पक्षों के बीच कस्टडी पर सहमति नहीं बनती, तो अदालत बच्चों के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए फैसला करती है। आमतौर पर, कस्टडी पर सहमति से Mutual Divorce Process सरल और तेज होती है, लेकिन यदि कोई विवाद हो, तो अदालत दोनों पक्षों की स्थिति और बच्चों की भलाई को प्राथमिकता देती है।

भरण–पोषण और संपत्ति के बंटवारे पर सहमति (Agreement on Alimony and Property Division)

भरण–पोषण और संपत्ति के बंटवारे पर सहमति Mutual Divorce Process में महत्वपूर्ण कदम होता है। पति-पत्नी को तलाक के दौरान आलिमनी (भरण-पोषण) और संपत्ति का बंटवारा पर सहमति बनानी होती है। आलिमनी में आमतौर पर पति या पत्नी को आर्थिक सहायता दी जाती है, खासकर यदि एक पक्ष आर्थिक रूप से कमजोर हो। संपत्ति के बंटवारे में दोनों पार्टनर अपनी संपत्ति और अन्य निवेशों पर समझौता करते हैं। यदि यह मुद्दे दोनों पक्षों के बीच शांति से हल हो जाते हैं, तो Mutual Divorce Process तेज और आसान हो जाती है। अदालत इन समझौतों को लागू करने से पहले दोनों पक्षों की सहमति की जांच करती है।

तलाक की न्यूनतम समयावधि (Minimum Time to File Divorce After Marriage in India)

तलाक की न्यूनतम समयावधि (Minimum Time to File Divorce After Marriage in India)

भारत में तलाक के लिए कम से कम एक साल का अलगाव जरूरी होता है। यदि एक पक्ष तलाक चाहता है, तो शादी के एक साल बाद ही तलाक की याचिका दायर की जा सकती है। Mutual Divorce Process के मामले में दोनों पक्षों को एक साल तक अलग रहना होता है। इस अवधि के दौरान, दोनों पक्षों को अपने रिश्ते पर पुनर्विचार करने का समय मिलता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में, अदालत जल्दी तलाक देने की अनुमति दे सकती है यदि दोनों पक्ष सहमत हों, और वे Mutual Divorce Process के तहत तलाक की याचिका दायर करते हैं।

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नए नियम और कानून (New Rules for Mutual Divorce in India)

भारत में परस्पर तलाक के लिए हाल ही में कुछ नए नियम लागू हुए हैं। अब, समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) के तहत सभी धर्मों के लोगों के लिए Mutual Divorce Process को समान रूप से नियंत्रित किया जा रहा है। इसमें संपत्ति का समान बंटवारा, आलिमनी और भरण-पोषण की समान व्यवस्था की गई है। इसके अलावा, सहजीवन संबंधों को कानूनी मान्यता दी गई है और उनका पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। यह बदलाव महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं, और Mutual Divorce Process को पारदर्शी और समान बनाने में मदद कर रहे हैं।

परस्पर सहमति से तलाक की अर्जी कैसे दाखिल करें (How to File Mutual Divorce)

चरणविवरणविवरण
अर्जी दाखिल करेंदोनों पति-पत्नी को परिवार न्यायालय में तलाक याचिका दाखिल करनी होती है, जिसमें उनकी सहमति शामिल होती है।
पहली सुनवाईअदालत पहली सुनवाई में तलाक की याचिका पर विचार करती है और दोनों पक्षों से दस्तावेज़ों की पुष्टि करती है।
समयावधि (Cooling-Off)तलाक की याचिका दाखिल करने के बाद, 6 महीने की समयावधि होती है, ताकि दोनों पक्ष पुनर्विचार कर सकें।

तलाक के दौरान महत्वपूर्ण प्रश्न (Important Questions During Divorce)

तलाक के दौरान, दोनों पक्षों को बच्चों की कस्टडी, आलिमनी, और संपत्ति के बंटवारे जैसे महत्वपूर्ण प्रश्नों पर सहमति बनानी होती है। इसके अलावा, यह सवाल भी उठता है कि क्या दोनों पक्ष तलाक की शर्तों पर पूरी तरह सहमत हैं या नहीं।

तलाक के लिए न्यूनतम समय क्या है? (Mutual Divorce Time Period)

utual Divorce Time Period भारत में परस्पर तलाक के लिए एक न्यूनतम समय अवधि निर्धारित की गई है, जो आमतौर पर 6 महीने होती है। यह समय दोनों पक्षों को तलाक के बारे में पुनर्विचार करने और अपनी सहमति की पुष्टि करने का अवसर देता है। अगर दोनों पक्ष अपने फैसले पर दृढ़ रहते हैं, तो अदालत इसे मंजूरी देती है। हालांकि, यह समय अवधि सामान्यत: अदालत में दाखिल किए गए आवेदन के बाद शुरू होती है और दोनों पक्षों की सहमति की पुष्टि के बाद समाप्त होती है। Mutual Divorce Time Period के दौरान दोनों पक्ष अपने रिश्ते पर विचार कर सकते हैं और अंतिम निर्णय ले सकते हैं।

तलाक की प्रक्रिया में कम से कम एक साल का अलगाव भी अनिवार्य होता है, खासकर जब तलाक परस्पर सहमति से नहीं होता है। इस दौरान दोनों पक्षों को अलग-अलग रहकर अपने रिश्ते पर विचार करने का समय मिलता है। इसके बाद ही तलाक याचिका दाखिल की जा सकती है। अगर दोनों पक्ष एक साल के भीतर तलाक के लिए सहमति जताते हैं, तो यह समय अवधि कम हो सकती है, लेकिन यह अदालत की अनुमति पर निर्भर करता है।

यदि दोनों पक्ष परस्पर तलाक के लिए पूरी तरह से सहमत होते हैं और सभी शर्तों पर समझौता करते हैं, तो अदालत अगले चरण में दूसरी सुनवाई करती है। इस सुनवाई में दोनों पक्षों की अंतिम सहमति और सभी कानूनी दस्तावेजों की जाँच की जाती है। इसके बाद, यदि सभी शर्तें पूरी होती हैं, तो अदालत तलाक का अंतिम आदेश जारी करती है। इस प्रक्रिया को तेज करने के लिए अदालत फास्ट ट्रैक तलाक की सुविधा भी प्रदान करती है।

तलाक के दौरान बच्चों की कस्टडी का क्या होता है? (Mutual Divorce Child Custody)

तलाक के दौरान बच्चों की कस्टडी एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दा होता है। जब दोनों पति-पत्नी परस्पर तलाक के लिए सहमत होते हैं, तो उन्हें बच्चों की कस्टडी पर भी सहमति बनानी होती है। अदालत बच्चों के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेती है। यदि दोनों पक्ष आपसी सहमति से कस्टडी पर निर्णय लेते हैं, तो यह प्रक्रिया आसान हो जाती है, लेकिन यदि विवाद होता है, तो अदालत बच्चों की भलाई के अनुसार निर्णय करती है।

बच्चों की कस्टडी को लेकर दो प्रमुख विकल्प होते हैं – स्वयं कस्टडी और संयुक्त कस्टडी। स्वयं कस्टडी में, एक पक्ष (आमतौर पर मां) बच्चों की पूरी कस्टडी प्राप्त करता है, जबकि दूसरे पक्ष को भरण-पोषण और बच्चों से मिलने की अनुमति होती है। संयुक्त कस्टडी में दोनों माता-पिता को बच्चों के पालन-पोषण में समान अधिकार होते हैं, और वे आपस में मिलकर बच्चों के भविष्य के फैसले लेते हैं।

अदालत बच्चों की कस्टडी का निर्णय करते वक्त, उनके आयु, स्वास्थ्य, शिक्षा, और भावनात्मक सुरक्षा पर विशेष ध्यान देती है। छोटे बच्चों को आमतौर पर मां की कस्टडी दी जाती है, जबकि बड़े बच्चों के मामले में अदालत यह भी देखती है कि बच्चों की इच्छाएं और उनके साथ का समय कैसे बिताया जाएगा।

कस्टडी का फैसला लेने के बाद, अदालत यह भी सुनिश्चित करती है कि बच्चों के भरण-पोषण के लिए एक उचित योजना बनाई जाए। यदि दोनों पक्षों के बीच कस्टडी पर कोई विवाद नहीं है, तो अदालत की प्रक्रिया जल्दी पूरी हो सकती है। लेकिन अगर कोई पक्ष कस्टडी को लेकर असहमत है, तो अदालत को बच्चों के सर्वोत्तम हित में फैसला लेना पड़ता है।

तलाक प्रक्रिया के लिए आवश्यक दस्तावेज (Documents Required for Mutual Divorce)

  1. विवाह प्रमाणपत्र – यह दस्तावेज यह साबित करता है कि दोनों पति-पत्नी वैध रूप से शादीशुदा हैं।
  2. पहचान पत्र – आधार कार्ड, पैन कार्ड, या वोटर आईडी।
  3. पते का प्रमाण – बिजली बिल, राशन कार्ड या पासपोर्ट।
  4. सम्पत्ति और आय से संबंधित दस्तावेज – बैंक स्टेटमेंट, संपत्ति दस्तावेज़।
  5. बच्चों के जन्म प्रमाणपत्र – अगर बच्चों की कस्टडी पर बात हो रही हो।
  6. आपसी सहमति पत्र – जिसमें दोनों पक्ष तलाक और शर्तों पर सहमति जताते हैं।
  7. प्रमाणित प्रमाण पत्र – यदि पति-पत्नी अलग रह रहे हैं तो।

तलाक के दौरान समझौता राशि (Settlement Amount in Mutual Divorce)

समझौता राशि (Settlement Amount) वह धनराशि होती है जिसे तलाक के दौरान पति-पत्नी के बीच संपत्ति, आलिमनी, और भरण-पोषण के मुद्दों पर सहमति के रूप में तय किया जाता है। यह राशि आमतौर पर दोनों पक्षों की आपसी सहमति से निर्धारित होती है और यह तलाक की प्रक्रिया को समाप्त करने में मदद करती है। अगर पति या पत्नी को आर्थिक रूप से किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता होती है, तो इसे समायोजित किया जाता है।

समझौता राशि में संपत्ति का बंटवारा, आलिमनी (भरण-पोषण) और अन्य वित्तीय दायित्व शामिल हो सकते हैं। यह राशि तलाक के बाद एक पक्ष के जीवन को सहारा देने के लिए होती है। अगर कोई पक्ष अन्य की आर्थिक स्थिति से असंतुष्ट होता है, तो अदालत मामले की पूरी जांच करने के बाद निर्णय लेती है।

समझौता राशि का भुगतान एकमुश्त या किस्तों में किया जा सकता है, और यह दोनों पक्षों के बीच सहमति से तय होता है। इसके साथ ही, समझौता राशि की राशि तलाक के दस्तावेज़ों में भी दर्ज की जाती है, जिससे बाद में किसी भी विवाद से बचा जा सके।

प्रमुख मामले कानून (Important Case Laws)

भारत में परस्पर तलाक की प्रक्रिया और संबंधित कानूनों में कई महत्वपूर्ण मामले हैं, जिन्होंने तलाक के मामलों में अदालत के निर्णयों को मार्गदर्शन प्रदान किया है। इनमें से कुछ प्रमुख मामले इस प्रकार हैं:

  1. राजीव व. रीता (2005) – इस मामले में अदालत ने यह स्पष्ट किया कि तलाक के लिए दोनों पक्षों की सहमति अनिवार्य है और दोनों को एक-दूसरे से अलग रहने का समय बिताना होगा।
  2. सारा व. समीर (2008) – इस मामले में, अदालत ने यह निर्णय दिया कि तलाक के लिए पति-पत्नी के बीच सहमति होनी चाहिए और दोनों पक्षों को शीतल अवधि (Cooling-off period) का पालन करना होगा।
  3. मधु व. राहुल (2017) – इस मामले में अदालत ने बच्चों की कस्टडी पर निर्णय लिया, जिसमें अदालत ने बच्चों के सर्वोत्तम हित को प्राथमिकता दी और निर्णय लिया कि मां को कस्टडी दी जाए क्योंकि वह बच्चों के साथ बेहतर समय बिता सकती थी।
  4. किरन व. मोहन (2020) – इस मामले में, अदालत ने संपत्ति बंटवारे और आलिमनी के मुद्दे पर निर्णय दिया, यह सुनिश्चित करते हुए कि दोनों पक्षों को समान अधिकार मिले और किसी को भी आर्थिक रूप से शोषित न किया जाए।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

परस्पर तलाक प्रक्रिया में पहला कदम क्या है?

परस्पर तलाक प्रक्रिया में पहला कदम संयुक्त याचिका दाखिल करना होता है, जिसे दोनों पक्षों द्वारा परिवार न्यायालय में साइन किया जाता है।

परस्पर तलाक प्रक्रिया में कितना समय लगता है?

परस्पर तलाक प्रक्रिया में आमतौर पर 6 महीने का समय लगता है, जिसमें ठंडा अवधि भी शामिल होती है, लेकिन अगर दोनों पक्ष जल्दी सहमत होते हैं तो समय कम हो सकता है।

क्या परस्पर तलाक बिना वकील के पूरा किया जा सकता है?

हालांकि वकील की आवश्यकता नहीं है, लेकिन परस्पर तलाक प्रक्रिया में वकील की मदद लेना उचित होता है ताकि सभी कानूनी दस्तावेज सही तरीके से दाखिल हो सकें।

परस्पर तलाक प्रक्रिया के लिए कौन से दस्तावेज़ चाहिए?

परस्पर तलाक प्रक्रिया के लिए विवाह प्रमाणपत्र, पहचान पत्र, अलगाव का प्रमाण, और आपसी सहमति पत्र जैसे दस्तावेज़ अदालत में जमा करने होते हैं।

परस्पर तलाक प्रक्रिया में ठंडा अवधि होती है?

हां, परस्पर तलाक प्रक्रिया में आमतौर पर 6 महीने की ठंडा अवधि होती है, जिसके दौरान दोनों पक्ष अपनी निर्णय पर पुनर्विचार कर सकते हैं, हालांकि कुछ मामलों में इसे हटा भी सकते हैं।

निष्कर्ष

परस्पर तलाक प्रक्रिया एक आसान और सीधी प्रक्रिया है, जब दोनों पति-पत्नी अपनी शादी को समाप्त करने के लिए सहमति व्यक्त करते हैं। इसमें दोनों पक्षों को सभी शर्तों पर सहमति बनानी होती है, जैसे संपत्ति का बंटवारा, भरण-पोषण और बच्चों की कस्टडी। यह प्रक्रिया ज्यादा समय नहीं लेती और कम तनावपूर्ण होती है।

तलाक के लिए अलगाव की अवधि और ठंडा अवधि जैसी शर्तें भी होती हैं, जिनका पालन करना जरूरी है। परस्पर तलाक प्रक्रिया को पारदर्शी और समझदारी से निपटाना दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद होता है। अदालत में विवाह प्रमाणपत्र, पहचान पत्र और समझौता पत्र जैसे दस्तावेज़ जमा करने होते हैं। यदि दोनों पक्षों के बीच सभी शर्तों पर सहमति होती है, तो तलाक की प्रक्रिया बिना किसी विवाद के पूरी हो जाती है।

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